बुधवार, फ़रवरी 11, 2009
विश्व धरोहर गावं नग्गर का अद्भुत सौंदर्य और गुप्त चिन्ह कुछ इस तरह चित्रित हुए मेरे मानस पर....
नग्गर
वह फ़िर सात घोडों के रथ पर
सवार होकर आया
देवदार के घने जंगलों को देख
झक्क सफ़ेद चांदी से लदे पहाड़
अपने हिस्से की धूप भी
यहीं लुटाना चाहता है
यह नादाँ सैलानी
यक नज़र मुडी इधर
यह किस शिल्पी ने उकेरा हिमालय
रोरिक वीथिका को देख
ठिठक गया सूरज का एक घोड़ा
कैसल में यूँ उतरी एक रश्मि
ज्यूँ माँ से मिलने पीहर चली आयी बेटी
त्रिपुरा सुंदरी के शिखर पर बैठ
न जाने क्या कह रही
भोर से गायब है लाल चिड़ी
माँ पुकार रही लौट आओ अब
सूर्यास्त हो चला
घोड़े अब तलक देख रहे पीछे मुड़कर
वह सारथी बेमन हांकता जा रहा रथ
एक कील फ़िर फंसी
इस 'कालचक्र' में
सूरज क्या जाने क्या टूना हुआ है?
भंडार गृह में सदियों से रखे हैं
राक्षसी मुखौटे
पर इस रहस्य को वे क्या जाने?
राजमहल का तलघर भी बंद है.....
अलबत्ता
नग्गर के बर्सेलों ने दोपहर
में कुछ बुदबुदाया तो था......
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1 टिप्पणी:
Dear Shashi,
Your sensitivity is very nicely reflected in your poem.
Best,
Sanjeeva
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