शुक्रवार, मार्च 27, 2009

kirayedar



उम्र भर
एक अजीब सी उपेक्षा सहता है वह
चारदीवारी के भीतर
मकान मालिक की तरह ही
रहता है
पर उसकी तरह
महसूस नही कर पाता
शान्ति भंग न हो जाए कहीं
आहिस्ता आहिस्ता
ठोंकता है दीवार पर कील
हर महीने की अन्तिम तारीख को
बढ़ जाता है तनाव
और फ़िर अदायगी के बाद
कुछ दिनों के लिए हो जाता है निश्चिंत
सुनहरे सपने देखता है कभी कभी
सोन मछलियाँ तैरती
उसके ड्राइंग रूम में
उसे भी हक़ है की वह सोचे
उसका भी हो अपना मकान
और वह भी ठोंक सके
बेसाख्ता अपनी दीवार में कील......
शशि भूषण पुरोहित

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

shashi g, es mandi k dour mein kai kirayedaron ne char mahene se kiraya nahi diya, unka bhe socho jara , woh kaise apne deewaron par keel thokte honge.